मानव और प्रकृति मे बहुत गहरा सम्बन्ध है । वह प्रकृति की गोद मे पैदा होता है । प्रकृति से ही अपने भोजन निवास आदि जरूरत पूरी करता है । लेकिन जैसे – आबादी बढ़ रही है और समाज आर्थिक रूप से संपन्न होता जा रहा है वैसे ही उपभोक्ता वाद की प्रकृति मनुष्य पर हावी होता जा रही है और वह जाने अनजाने बाजार के चक्रव्यूह मे फांसकर जरुरी गैर जरुरी समान खरीद रहा है जिससे की पर्यावरण पर प्रदुषण का बोझ बढ़ता जा रहा है। मानव की अंधाधुंध एवं निरन्तर माँग ने भूमि , जल , वन , एवं सम्पूर्ण पर्यावरणीय गुणवत्ता को प्रभावित किया है और उसमे ह्रास की प्रकृति दिखने लगी है। प्रथवी के तापमान का बढ़ना , जीव जन्तु , पक्षीयो जानवरो की बहुत सी प्रजातियो का विलुप्त होना , नई- नई बीमारियों का होना , और मानव की बिमारियो से लडने की शक्ति का निरन्तर ह्रास होना ।